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यूपी चुनाव करीब आते ही सभी प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने ब्राह्मण मन्त्र का शुरू किया जाप,सभी प्रमुख पार्टियां अपने तरीके से ब्राह्मण मतदाताओं को रिझाने के लिए अपना रहे अनेक हथकंडे/ सरकार बनने पर साढ़े चार साल तक ब्राह्मणों की लगातार होती रहती उपेक्षा

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लखनऊ। कानपुर में पिछले साल जुलाई में माफिया सरगना विकास दुबे की पुलिस एनकाउंटर में मौत से पूरे देश में ब्राह्मण सुर्खियों में आ गया। उसी दिन आगामी यूपी विधानसभा चुनाव में ब्राह्मणों के मुद्दा बनने की नींव पड़ गई। यह उस दौरान हुआ था जब उत्तर प्रदेश पुलिस उसे मध्य प्रदेश से ला रही थी।उसके सात दिन पहले 2 जुलाई को उसने जिले के बिकरू गांव में सात पुलिसवालों को मार गिराया था। इसी दौरन पुलिस ने विकास दुबे के छह साथि‍यों को भी एनकाउंटर में मार गिराया था। इन साथि‍यों में ज्यादातर ब्राह्मण जाति से थे। जब वह भगोड़ा बना हुआ था, तब सोशल मीडिया पर उसे ब्राह्मण रक्षक बताए जाने वाले पोस्ट की भरमार लग गई थी।

लेकिन उसकी मौत के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में अचानक ब्राह्मण समुदाय राजनीति के केन्द्र में आ गया। विकास दुबे और उसके साथि‍यों के एनकाउंटर के बाद बहुजन समाज पार्टी बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने उत्तर प्रदेश में योगी अदित्यनाथ की सरकार में ब्राह्मणों पर अत्याचार बढ़ने का आरोप लगाया था। अगस्त, 2020 में तत्कालीन वरिष्ठ कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद ने अपने संरक्षण में बने संगठन ‘ब्राह्मण चेतना परिषद’ के जरिए ब्राह्मणों को जोड़ने का अभि‍यान शुरू किया था।

कोरोना संक्रमण के दौरान जितिन ब्राह्मण परिवारों से ऑनलाइन संवाद कर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार को ब्राह्मण विरोधी साबित करने की कोशि‍श कर रहे थे। जितिन ने मुख्यमंत्री योगी को पत्र लिखकर परशुराम जयंती का अवकाश बहाल करने की भी मांग की थी, जिसे 2017 में भाजपा की सरकार बनने के बाद खत्म कर दिया गया था।

2017 के विधानसभा चुनाव से पहले ब्राह्मण मुख्यमंत्री का दांव खेलने वाली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और ‘श्री कल्की धाम, संभल’ के पीठाधीश्वर आचार्य प्रमोद कृष्णम कहते हैं, भाजपा की हिंदुत्व की राजनीति में ब्राह्मणों का मुख्य स्थान है। उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण और उसकी उपजातियों को मिलाकर उनकी आबादी 11 फीसद के करीब है। योगी सरकार से ब्राह्मण बेहद नाराज हैं। इस वजह से भाजपा को 2022 के विधानसभा चुनाव में हिंदुत्व कार्ड खेलने में कठिनाई होगी। इसी की भरपाई करने के लिए भाजपा ब्राह्मण नेताओं को शामिल कर माहौल बनाने की कोशि‍श कर रही है। इसका उसे कोई फायदा नहीं होगा।

राजनैतिक जानकार चुनावों में ब्राह्मणों के वोट करने के तौर-तरीकों को एक नए नजरिए से देख रहे हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर एस.के. द्विवेदी कहते हैं, ब्राह्मण मतदाता असल में ‘फ्लोटिंग वोटर’ है जो मुख्यत: सुरक्षा, रोजगार जैसे मुद्दों पर वोट करता है। ब्राह्मण और सामाजिक रूप से प्रभावी दूसरी अगड़ी जातियों को अपने साथ जोड़कर राजनैतिक पार्टियां अपने लिए महौल बनाती हैं।

यह महज संयोग नहीं है कि उत्तर प्रदेश में जब भी जिस पार्टी ने सबसे ज्यादा सीटें जीतीं, उसके पास सबसे ज्यादा ब्राह्मण विधायक रहे हैं। 2007 में प्रदेश में पूरे बहुमत से सरकार बनाने वाली बसपा के पास उस वक्त सबसे अधि‍क 41 ब्राह्मण विधायक थे तो पांच वर्ष बाद 2012 में सरकार बनाने वाली समाजवादी पार्टी (सपा) के पास सबसे ज्यादा 21 ब्राह्मण विधायक थे। 2017 के विधानसभा चुनाव में कुल 56 ब्राह्मण विधायक जीते थे इनमें 46 भाजपा के टिकट पर जीते थे। 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले सभी राजनीतिक पार्टियां एक बार फि‍र ब्राह्मणों को रिझाने में जुट गई हैं।

ब्राह्मण समाज के हितों के लिए काम कर रही संस्था ब्राह्मण संसद के अध्यक्ष अमरनाथ मिश्र बताते हैं, 2017 के विधानसभा चुनाव में ब्राह्मणों ने भाजपा को एकतरफा समर्थन दिया था। पिछले चार वर्षों के दौरान ब्राह्मणों को रोजगार और आर्थिक सुरक्षा देने में भाजपा सरकार असफल साबित हुई है। उलटे भाजपा सरकार के कार्यकाल में बड़ी संख्या में ब्राह्मण प्रताड़ित हुए हैं। कई निर्दोष ब्राह्मणों की हत्या हुई है।

कई निर्दोष ब्राह्मणों पर झूठे मुकदमें दर्ज कराए गए हैं। इन वजहों से ब्राह्मण प्रदेश की भाजपा सरकार से नाराज चल रहा हैं।” हालांकि भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता मनीष शुक्ला इन आरोपों को खारिज करते हैं। मनीष शुक्ला कहते हैं, ब्राह्मण समाज को जितना सम्मान भाजपा की केंद्र और राज्य की सरकार में मिला है, उतना पहले कभी नहीं मिला है। ब्राह्मण समाज का भाजपा को पूरा समर्थन है।

2017 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा अगस्त, 2016 में बसपा के तत्कालीन वरिष्ठ ब्राह्मण नेता ब्रजेश पाठक और दो महीने बाद अक्तूबर, 2016 में कांग्रेस की तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी को शामिल कर ब्राह्मण राजनीति में भगवा खेमे की धमक दिखाई थी। 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने दूसरी पार्टियों के प्रमुख ब्राह्मण नेताओं को शामिल कर एक बार फि‍र ब्राह्मण हितैषी होने का माहौल बनाने की कोशि‍श कर रही है।

हाथरस के सादाबाद से विधायक तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बसपा के ब्राह्मण चेहरा रामवीर उपाध्याय की पत्नी, पूर्व सांसद सीमा उपाध्याय 15 मई को भाजपा में शामिल हो गईं। चुनाव के पहले रामवीर उपाध्याय के भी भाजपा में शामिल होने की पूरी संभावना है। जितिन प्रसाद के शामिल होने के बाद पूर्वांचल में कांग्रेस के कई और युवा ब्राह्मण नेता भाजपा में शामिल होने की तैयारी में हैं। भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष विजय बहादुर पाठक कहते हैं, भाजपा की सबका साथ-सबका विकास की नीति से प्रभावित होकर सभी जातियों के लोग पार्टी में शामिल होना चाहते हैं ब्राह्मण भी उनमें हैं।

उत्तर प्रदेश में दोबारा सत्ता में वापसी की कोशि‍श में लगी सपा परशुराम की मूर्ति के जरिए बाह्मणों को लुभाने की कोशि‍श कर रही है। 5 अगस्त, 2020 अयोध्या में राम मंदिर के भूमिपूजन के दो दिन ही बीते थे कि सपा के राष्ट्रीय सचिव तथा पूर्ववर्ती अखि‍लेश यादव सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे अभि‍षेक मिश्र ने राजधानी लखनऊ में 108 फुट ऊंची परशुराम की प्रतिमा लगाने के साथ सभी जिलों में मूर्ति स्थापना की घोषणा की थी।

फिलहाल जालौन, उरई, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोंडा समेत दस जिलों में परशुराम मूर्ति की स्थापना हो चुकी है। सपा के अभिषेक मिश्र बताते हैं, सभी जिलों में सपा नेताओं की छह सदस्यीय टीम बनाई गई है, जो मूर्ति स्थापना के लिए जगह की तलाश और सभी जरूरी प्रबंध करती है। मूर्ति स्थापना के लिए चंदा लेकर धन जुटाया जा रहा है। लखनऊ में लगने वाली 108 फुट ऊंची परशुराम की प्रतिमा के लिए जगह की तलाश की जा रही है।

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