गोण्डा। जनपद में गो संरक्षण अब केवल सामाजिक दायित्व नहीं, बल्कि नवाचार और सतत आजीविका का माध्यम बन रहा है। जिला प्रशासन द्वारा अपने विशेष अभियान के तहत अब गो आश्रय स्थलों को उपयोगी उत्पादों के निर्माण केंद्रों में बदला जा रहा है, जिससे न केवल पर्यावरण लाभ हो रहा है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी नई ऊर्जा मिल रही है।
*बदलेपुर: गोबर से लट्ठे, और लट्ठों से आमदनी*
जनपद के बदलेपुर स्थित अस्थायी गो आश्रय स्थल पर एक अभिनव प्रयोग शुरू किया गया है। यहां गोबर से लट्ठे (ईंधन के विकल्प) बनाने की स्वचालित मशीन स्थापित की गई है। इन लट्ठों की स्थानीय बाजार में मांग तेजी से बढ़ रही है। गांवों में जहां परंपरागत लकड़ी का उपयोग अब भी जारी है, वहां यह गोबर लट्ठा एक सस्ता और पर्यावरण-अनुकूल विकल्प बनकर उभरा है। इस प्रक्रिया से प्राप्त आय न केवल आश्रय स्थल के संचालन में सहयोगी बन रही है, बल्कि इसके जरिए स्थानीय महिलाओं और युवाओं को भी रोजगार मिल रहा है।
*वर्मीकम्पोस्ट: गोबर से खेती के लिए वरदान*
इसी तहर, इस गो आश्रय स्थल में वर्मीकम्पोस्ट यूनिट्स की स्थापना भी की गई है। यह केंचुआ खाद, जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए अत्यंत प्रभावशाली उपाय है। प्रशासन की योजना है कि इस खाद का उपयोग प्राकृतिक खेती में किया जाए, जिससे किसानों की लागत घटे और उत्पाद की गुणवत्ता बढ़े। इससे गोबर जैसे परंपरागत रूप से अनुपयोगी माने जाने वाले पदार्थ को मूल्यवान कृषि संसाधन में बदला जा रहा है।
*गो संरक्षण से ग्रामीण विकास तक*
जिला प्रशासन गोंडा की यह पहल गो संरक्षण को आत्मनिर्भरता, महिला सशक्तिकरण, जैविक खेती और स्वच्छता से जोड़ती है। यह ‘वेस्ट टू वेल्थ’ की एक जीवंत मिसाल है, जहां गोबर अब भार नहीं, बल्कि बहुआयामी अवसर बन गया है। आने वाले दिनों में इस मॉडल को जनपद के सभी आश्रय स्थलों में लागू करने की योजना है।