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मिशन वात्सल्य ज़िले के 1088 जरूरतमंद बच्चों को मिला सहारा

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गोंडा, 9 मई। जनपद के 1088 बच्चों के लिए यह किसी वरदान से कम नहीं। एक समय था जब जीवन में अनिश्चितता, संघर्ष और अभाव उनके हिस्से में था। लेकिन अब मिशन वात्सल्य योजना के अंतर्गत उन्हें न सिर्फ आर्थिक सहारा मिलेगा, बल्कि जीवन में आगे बढ़ने का अवसर भी मिलेगा।

18 वर्ष से कम उम्र के इन बच्चों को मिशन वात्सल्य के अन्तर्गत संचालित स्पॉन्सरशिप योजना के तहत प्रति माह 4000 रुपये की आर्थिक मदद प्रदान किए जाने के लिए चुना गया है। वर्तमान में 792 बच्चों को इससे लाभान्वित किया जा रहा है। बाकी के लिए अगले माह से बजट जारी हो जाने की उम्मीद है।

पूर्व में इस योजना के तहत केवल 134 बच्चे लाभान्वित हो रहे थे, लेकिन अब यह संख्या बढ़कर 1088 हो गई है। यह न सिर्फ आंकड़ों की बात है, बल्कि उन कहानियों की शुरुआत है जो अब उम्मीद, सुरक्षा और आत्मसम्मान से लिखी जाएंगी।

*जब आँसू उम्मीद में बदलते हैं*
748 ऐसे बच्चे, जिनकी मां विधवा हैं, अब इस योजना से जुड़े हैं। ऐसे परिवार, जो कभी दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष कर रहे थे, अब हर महीने ₹4000 की मदद से अपने बच्चों की पढ़ाई, दवा और देखभाल कर पाएंगे।
33 एचआईवी संक्रमित बच्चे, जिनके लिए समाज में कई बार संवेदनशीलता की जगह उपेक्षा मिलती है, अब इस योजना के दायरे में हैं। 44 दिव्यांग बच्चे भी अब मुख्यधारा में शामिल होकर अपना भविष्य संवारने का सपना देख सकते हैं।
*हर संघर्ष की पहचान, हर दर्द को सहारा*
यह योजना सिर्फ संख्याओं की नहीं है, यह उन कहानियों की है जो चुपचाप सब कुछ सहते आए हैं—10 बाल श्रमिक, 8 भिक्षावृत्ति में लिप्त बच्चे, 3 तलाकशुदा या परित्यक्त मां के बच्चे, 21 ऐसे बच्चे जिनके माता-पिता दिव्यांग हैं और 32 बच्चे जिनके अभिभावक जानलेवा बीमारी से जूझ रहे हैं।
इन सभी बच्चों के लिए यह योजना केवल आर्थिक सहयोग नहीं, बल्कि एक मानवीय स्पर्श है—जो उन्हें यह अहसास दिलाती है कि वे अकेले नहीं हैं।
*यह है योजना के पात्र*
वे बच्चे जिनके माता-पिता नहीं रहे, जिनकी मां तलाकशुदा या अलग रह रही हो। जो बाल विवाह, बाल श्रम, तस्करी या भिक्षावृत्ति से मुक्त कराए गए हैं। जो लापता रहे हैं, बेघर हैं या जिनके माता-पिता जेल में हैं। एचआईवी, मानसिक या शारीरिक असमर्थता और गंभीर बीमारी से ग्रसित अभिभावकों वाले बच्चे भी इस योजना के पात्र हैं।
प्राकृतिक आपदा, उत्पीड़न और उपेक्षा के शिकार बच्चे—अब अकेले नहीं हैं। मिशन वात्सल्य उन्हें सहारा देने, उनका जीवन बेहतर बनाने और एक नया रास्ता दिखाने का प्रयास कर रहा है।

*एक मिशन, जो सिर्फ योजना नहीं, जिम्मेदारी है*
जिला प्रशासन के प्रयास से यह योजना अब जनपद में एक नई पहचान बना रही है। जिला प्रोबेशन अधिकारी संतोष सोनी ने बताया कि बच्चों की पहचान, दस्तावेजीकरण, सत्यापन और चयन की प्रक्रिया बेहद संवेदनशीलता के साथ की गई है, जिससे सहायता केवल उन्हीं तक पहुंचे जो वास्तव में इसके हकदार हैं।

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